गर्मियों के मौसम में सभी लोग रायता खाना पसंद करते हैं। आम घरों में गाजर रायता, बूंदी रायता और खीरा रायता फेमस है। लेकिन आज हम आपके लिए कुछ नया लेकर आए हैं। आम का सीजन चल रहा है। साथ ही गर्मियों में आम का रायता बनाकर इसका दोगुना लाभ उठाया जा सकता है। तो चलिए इसकी आसान रेसिपी जान लेते हैं। सामग्री (4 लोगों के लिए) 3 आम 1-1/2 कप दही 1/2 छोटा चम्मच राई 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर 1/2 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर 2 sprig कढ़ी पत्ता हींग चुटकी भर 1 छोटा चमच्च तेल नमक स्वादानुसार विधि 1. आम का रायता बनाने के लिए सबसे पहले आम को धोकर छील लें। आम को कस लें और अलग से रख दे। 2. दही को फेट ले। अब इसमें आम, नमक, लाल मिर्च पाउडर और जीरा पाउडर डालें और मिला लें। रायते को अलग से रख दें। 3. अब एक छोटे पेन में तेल गरम करें इसमें हींग डालें और 1 मिनट बाद राई डालकर तड़कने दें। साथ ही कढ़ी पत्ता डाल दें। 10 सेकेंड तक पकने के बाद अब रायते में तड़का लगाएं। 4. आम का रायता तैयार है।
आयुर्वेद में आसव और आरिष्ट क्या हैं ? - दशमूलारिष्ट और अन्य कुछ प्रसिद्ध आसव और आरिष्ट - भाग - 1 -SOME ASAVAS & ARISHTAS IN AYURVEDA :
आसव और आरिष्ट :
आयुर्वेद में दवा बनाने के आसव और अरिष्ट दो प्रमुख तरीके हैं। आसव से आश्य है, जड़ी के आसवन (डिस्ट्रीलेशन) से तैयार दवा।
अरिष्ट का मतलब है, कि किसी भी जड़ी का एक चौथाई तैयार काढ़ा जिसे क्वाथ कहा जाता है। अरिष्ट बनाने के लिए प्राचीन पद्धति में क्वाथ को धान, महुआ या गुड़ के साथ लंबे समय रखा जाता था जिससे फरमेंटेशन के बाद अरिष्ट तैयार होता था, लेकिन अब इन्हें तैयार करने के लिए सीमेंट की बड़ी टंकियों का इस्तेमाल किया जाता है।
कुछ प्रसिद्ध आसव और आरिष्ट :
अर्जुनारिष्ट : शरीर में वायु अधिक होने से हृदय की धड़कन बढ़ना, पसीना अधिक आना, मुँह सूखना, नींद कम आना, दिल घबराना, फेफड़े के रोग तथा हृदय रोगों में लाभकारी।
दशमूलारिष्ट : बल, वीर्य व तेज बढ़ाता है तथा बाजीकारक है। स्त्रियों के प्रसूत रोग, अरुचि, शूल सूतिका, संग्रहणी, मंदाग्नि, प्रदर रोग, श्वास, खांसी वात व्याधि, कमजोरी आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा है। शरीर पुष्ट करता है। प्रसूता स्त्रियों तथा प्रसूति के बाद इसका सेवन अवश्य करना चाहिए।
कुमारी आसव : सब प्रकार के उदर रोग, तिल्ली व जिगर बढ़ना, गुल्म (वायु गोला), भोजन के बाद पेट का दर्द आदि उदर रोग नष्ट होते हैं। भोजन ठीक से पचता है तथा अरुचि दूर होती है। श्वास, खाँसी, बवासीर, पीलिया, धातुक्षय, हृदय रोग, कब्जियत व वात व्याधि को नष्ट करता है। यकृत रोग में विशेष लाभकारी।
कुमारी आसव (लौह युक्त) : ऊपर लिखे गुणों के अतिरिक्त पथरी, अपस्मार, प्रमेह व शूल रोग नष्ट करता है तथा खून बढ़ाता है। मूत्र कृच्छ, अपस्मार, कृमि रोग, शुक्रदोष आदि में लाभकारी है।
द्राक्षारिष्ट : उरक्षत छाती में दर्द होना, कुकर खाँसी, गले के रोग, श्वास, काँस, क्षय, फेफड़ों की कमजोर व कब्जियत में लाभकारी तथा बलवर्द्धक है।
अर्जुनारिष्ट : शरीर में वायु अधिक होने से हृदय की धड़कन बढ़ना, पसीना अधिक आना, मुँह सूखना, नींद कम आना, दिल घबराना, फेफड़े के रोग तथा हृदय रोगों में लाभकारी।
नोट : अधिकांश आसव-आरिष्ट 10 से 25 मिलीलीटर तक बराबर पानी मिलाकर भोजन करने के बाद दोनों समय पिए जाते हैं।
इस लेख के अन्य भागों में हम कुछ अन्य आसवों और अरिष्टों के बारे में बताएँगे.
चेतावनी : लेख मात्र आपकी जानकारी हेतु है. यह केवल प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से न बनकर,इसमें कई प्रकार की भस्मों को भी डाला जाता है. ऐसे रस-रसायनों का सेवन केवल किसी योग्य वैद्य आदि की सलाह, या देख-रेख में ही लेने चाहियें
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आप का आज का दिन मंगलमयी हो - आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे - इस कामना के साथ।
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